( तर्ज - शिरडीमें साईनाथ बड़े संत)
संतोमें एक संत ,
गजानन भी होगये ।
अलमस्त भक्ती पाके ,
निजधाम सोगये ॥ टेक ॥
लाखोंने उन्हें देखा था ,
बेहोश प्रभूमें ।
पर्वा न उन्हींको थी ,
अच्छा ही रहूँ में ॥
जरतारी कई कपडे ,
गरीबोंको दे गये ॥ १ ॥
शेगांव धाम उनका ,
भक्तोंने बनाया
जाती हजारों जनता ,
धूप दीप जलाया ॥
उनकी गरीबी और
दरिद्र दूर हो गये ॥ २ ॥
उनकी सहज समाधीका ,
भारी योग था ।
बिन कपढे रंगे उनका
अलमस्त जोग था ॥
किसको नहीं है दूर किया ,
जो भक्तीसे गये ॥ ३ ॥
ग्यानीमें जो ग्यानी थे ,
भोलेमें भोले - भाले ।
जंगल हो या मंदर ,
दोनोंसे थे निराले ॥
कौन पाये उनकी हस्ती ,
जनम जनम खोगये ॥ ४ ॥
हम ऐसेही वलियोंके
पल्लोंमें है दिये ।
तुकड्या कहे इस संतसे
कई भक्त तर गये ॥ ५ ॥
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